शिरडी के साई बाबा कहां पैदा हुए थे, शिरडी या पाथरी?
'सबका मालिक एक' ये सीख देने वाले शिरडी के साई बाबा की समाधि स्थल को लेकर उभरा विवाद थमने का नाम नही ले रहा है.
महाराष्ट्र के परभणी ज़िले के पाथरी गांव को शिरडी के साई बाबा का जन्मस्थल घोषित किया गया है.
इतना ही नहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पाथरी के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये देने की घोषणा भी की है.
राज्य की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन सरकार के इस फ़ैसले की वजह से शिरडी गांव के लोग नाराज़ हैं. उन्होंने विरोध में रविवार को बंद का आह्वान किया था.
पाथरी के गांववालों का कहना है कि साई बाबा का जन्म इसी गांव में हुआ था. ये साबित करने के लिए उनके पास 29 प्रमाण हैं.
वहीं शिरडी के लोगों का कहना है कि इन सबूतों में से एक भी पुख्ता सबूत उनके सामने लाया जाए.
इस विवाद का हल खोजने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सोमवार को एक बैठक भी बुलाई है. बैठक के फ़ैसले के बाद ही आगे की तस्वीर साफ़ हो पाएगी.
कैसे शुरू हुआ ये विवाद
महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले से नांदेड की और जाते हुए एक रेलवे स्टेशन है जिसका नाम मानवत रोड.
इस स्टेशन पर कई सालों से एक बोर्ड लिखा हुआ है, जिस पर लिखा है, शिरडी के साई बाबा के जन्मस्थल पाथरी जाने के लिए यहां उतरें.
हालांकि ये कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन यहां के स्थानीय लोगों का यही मानना है.
साई बाबा जन्मस्थल मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष अतुल चौधरी के मुताबिक, "साईबाबा का जन्म 1868 में पाथरी में हुआ था. पूर्व मुख्यमंत्री बालासाहेब खेर के बेटे विश्वास खेर ने 30 साल की रिसर्च के बाद ये कहा था कि पाथरी ही साईबाबा की जन्मभूमि है. पाथरी से नजदीक सेलू गांव में साईबाबा के गुरु केशवराज महाराज मतलब बाबासाहेब महाराज का मंदिर है. हम मानते हैं कि केशवराज महाराज ही साईबाबा के गुरु थे."
अतुल चौधरी कहते हैं, "गोविंद दाभोलकर की किताब और 1974 में साई संस्थान की छपी साई-चरित्र के आठवें संस्करण में ये बात लिखी हुई है कि साई बाबा पाथरी में पैदा हुए थे. साईबाबा ने अपने एक शिष्य म्हालसापती को कहा था कि उनके माता—पिता ने उन्हे एक फकीर की झोली में डाल दिया था."
"साईबाबा का मूल नाम हरिभाऊ भुसारी था. उनके बड़े भाई भी फकीर थे. साईबाबा पर उनका प्रभाव नजर आता है. पाथरी गांव में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या अच्छी खासी है. कई बड़े फकीर इसी गांव से थे, हालांकि इनकी कहानियां बड़े पैमाने पर कभी सामने नही आ पाई और इसलिए पाथरी गांव का नाम भी मशहूर नहीं हुआ. साई बाबा को भी ऐसे ही फकीरों ने प्रभावित किया था और उनका पहनावा भी मुस्लिम फकीर की तरह ही था."
अतुल चौधरी का ये भी कहना है कि संत दासगणु की आत्मकथा में भी साईबाबा के जन्मस्थल पाथरी होने की बात कही गई है.
पाथरी गांव के लोग भले ही साई-चरित्र के आठवें संस्करण के हवाले से ये दावा करें कि पाथरी ही साई बाबा का जन्मस्थल है लेकिन शिरडी संस्थान के सुरेश हरवारे का कहना है कि अभिलेखागार में इस किताब का कोई आठवां संस्करण नहीं है.
वे कहते हैं, "पाथरी के लोग जिस किताब के आधार पर ये दावा कर रहे हैं, वो संस्करण विश्वास खेर जी के वक्त की ही है. अब 36वां संस्करण हमारे पास है. इसमें से किसी भी संस्करण में पाथरी के जन्मस्थल होने का विवरण नहीं है. दाभोलकर जी की लिखी किताब भी हमारे पास है जिसमें ये बात कहीं नहीं लिखी हुई है."
"साईबाबा श्रद्धा का विषय है और हम समझते हैं कि लोगों की आस्था जुड़ी होती हैं. साईबाबा के जन्मस्थल को लेकर तामिलनाडु और आंध्र प्रदेश से भी दावे किए जा चुके हैं. हम साई बाबा के भक्तों की भावनाएं समझते हैं लेकिन हम सिर्फ़ इतना ही कह रहे हैं कि ऐसे दावों की पुष्टि के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं."
साई बाबा की आत्मकथाएं
क्या आत्मकथाओं के आधार पर साई बाबा के जन्मस्थल का निर्णय किया जा सकता है.
साई बाबा के जीवन पर रिसर्च करने वाले और मासिक पत्रिका लोकमुद्रा के संपादक राजा कालंदकर कहते हैं, "साई बाबा की आत्मकथाएं ज्यादातर भक्त लोगों ने ही लिखी है. इतिहासकार जब इतिहास की किसी घटना के बारे में लिखते हैं तो इसका सबूत देते हैं. आत्मकथा लिखने वाले लोग केवल उस वक्त की कहानी लिखते हैं. उनका उद्देश्य गलत नहीं होता, लेकिन इसमें प्रमाण के होने की अहमियत को इतना अहम नही माना जाता है."
"उन दिनों अहमदनगर ज़िले में दिन बंधु नाम की एक पत्रिका निकला करती थी. सत्यशोधक समाज के एक कार्यकर्ता मुकुंदराव पाटिल उस पत्रिका के संपादक हुआ करते थे. लेकिन उन्होंने भी केवल एक बार साई बाबा का जिक्र किया था. महाराष्ट्र का बहुचर्चित केसरी भी उसी दौरान छपता था. लेकिन इसमें भी साई बाबा के बारे में शायद ही कुछ छपा. गांव वालों के मुताबिक़ तिलक और कई सारे बड़े नेता साईबाबा के दर्शन के लिए उस वक्त भी आते थे, हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नही मिला है.
साईबाबा की एक बार मजिस्ट्रेट के सामने गवाही हुई थी, लेकिन तब भी उन्होंने अपने जन्मस्थल के बारे में ज़िक्र नहीं किया था. सिर्फ खुद का नाम साईबाबा बताया था."
साल 2016 में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे, उस वक्त उन्होंने पाथरी का दौरा किया था.
साई स्मृति शताब्दी वर्ष के अवसर पर अपने भाषण में उन्होंने पाथरी को साई बाबा का जन्मस्थल बताया और इसका विकास किए जाने की जरूरत जताई.
उस वक्त उनका ऐसा करना कई लोगों को पसंद नही था.
भाजपा नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने इस बाबत रामनाथ कोविंद का पक्ष लेते हुए कहा था कि उन्हें शायद किसी ने गलत जानकारी दी होगी, इसलिए कोविंद ने वह बात कही होगी.
इस बहस पर दोनों पक्ष चर्चा की तैयारी में है.
पाथरी के अतुल चौधरी के अनुसार, उनके पास साईबाबा के जन्मस्थल को लेकर 29 प्रमाण हैं.
वे कहते हैं, "हम सरकार को ये सबूत सौंपने के लिए तैयार हैं. हमें इस बात पर कोई एतराज नहीं होगा, अगर सरकार इन सबूतों पर गौर करने का फ़ैसला करे."
दूसरी तरफ़ शिरडी के सुरेश हवारे का कहना है कि सरकार की गलती से पाथरी को जन्मस्थल कहा गया है. ये श्रद्धा का विषय है और सरकार को इसे सावधानी से सुलझाना चाहिए. ये फ़ैसला शोध और सबूत की बुनियाद पर ही लिया जाना चाहिए."
महाराष्ट्र के परभणी ज़िले के पाथरी गांव को शिरडी के साई बाबा का जन्मस्थल घोषित किया गया है.
इतना ही नहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पाथरी के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये देने की घोषणा भी की है.
राज्य की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन सरकार के इस फ़ैसले की वजह से शिरडी गांव के लोग नाराज़ हैं. उन्होंने विरोध में रविवार को बंद का आह्वान किया था.
पाथरी के गांववालों का कहना है कि साई बाबा का जन्म इसी गांव में हुआ था. ये साबित करने के लिए उनके पास 29 प्रमाण हैं.
वहीं शिरडी के लोगों का कहना है कि इन सबूतों में से एक भी पुख्ता सबूत उनके सामने लाया जाए.
इस विवाद का हल खोजने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सोमवार को एक बैठक भी बुलाई है. बैठक के फ़ैसले के बाद ही आगे की तस्वीर साफ़ हो पाएगी.
कैसे शुरू हुआ ये विवाद
महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले से नांदेड की और जाते हुए एक रेलवे स्टेशन है जिसका नाम मानवत रोड.
इस स्टेशन पर कई सालों से एक बोर्ड लिखा हुआ है, जिस पर लिखा है, शिरडी के साई बाबा के जन्मस्थल पाथरी जाने के लिए यहां उतरें.
हालांकि ये कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन यहां के स्थानीय लोगों का यही मानना है.
साई बाबा जन्मस्थल मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष अतुल चौधरी के मुताबिक, "साईबाबा का जन्म 1868 में पाथरी में हुआ था. पूर्व मुख्यमंत्री बालासाहेब खेर के बेटे विश्वास खेर ने 30 साल की रिसर्च के बाद ये कहा था कि पाथरी ही साईबाबा की जन्मभूमि है. पाथरी से नजदीक सेलू गांव में साईबाबा के गुरु केशवराज महाराज मतलब बाबासाहेब महाराज का मंदिर है. हम मानते हैं कि केशवराज महाराज ही साईबाबा के गुरु थे."
अतुल चौधरी कहते हैं, "गोविंद दाभोलकर की किताब और 1974 में साई संस्थान की छपी साई-चरित्र के आठवें संस्करण में ये बात लिखी हुई है कि साई बाबा पाथरी में पैदा हुए थे. साईबाबा ने अपने एक शिष्य म्हालसापती को कहा था कि उनके माता—पिता ने उन्हे एक फकीर की झोली में डाल दिया था."
"साईबाबा का मूल नाम हरिभाऊ भुसारी था. उनके बड़े भाई भी फकीर थे. साईबाबा पर उनका प्रभाव नजर आता है. पाथरी गांव में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या अच्छी खासी है. कई बड़े फकीर इसी गांव से थे, हालांकि इनकी कहानियां बड़े पैमाने पर कभी सामने नही आ पाई और इसलिए पाथरी गांव का नाम भी मशहूर नहीं हुआ. साई बाबा को भी ऐसे ही फकीरों ने प्रभावित किया था और उनका पहनावा भी मुस्लिम फकीर की तरह ही था."
अतुल चौधरी का ये भी कहना है कि संत दासगणु की आत्मकथा में भी साईबाबा के जन्मस्थल पाथरी होने की बात कही गई है.
पाथरी गांव के लोग भले ही साई-चरित्र के आठवें संस्करण के हवाले से ये दावा करें कि पाथरी ही साई बाबा का जन्मस्थल है लेकिन शिरडी संस्थान के सुरेश हरवारे का कहना है कि अभिलेखागार में इस किताब का कोई आठवां संस्करण नहीं है.
वे कहते हैं, "पाथरी के लोग जिस किताब के आधार पर ये दावा कर रहे हैं, वो संस्करण विश्वास खेर जी के वक्त की ही है. अब 36वां संस्करण हमारे पास है. इसमें से किसी भी संस्करण में पाथरी के जन्मस्थल होने का विवरण नहीं है. दाभोलकर जी की लिखी किताब भी हमारे पास है जिसमें ये बात कहीं नहीं लिखी हुई है."
"साईबाबा श्रद्धा का विषय है और हम समझते हैं कि लोगों की आस्था जुड़ी होती हैं. साईबाबा के जन्मस्थल को लेकर तामिलनाडु और आंध्र प्रदेश से भी दावे किए जा चुके हैं. हम साई बाबा के भक्तों की भावनाएं समझते हैं लेकिन हम सिर्फ़ इतना ही कह रहे हैं कि ऐसे दावों की पुष्टि के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं."
साई बाबा की आत्मकथाएं
क्या आत्मकथाओं के आधार पर साई बाबा के जन्मस्थल का निर्णय किया जा सकता है.
साई बाबा के जीवन पर रिसर्च करने वाले और मासिक पत्रिका लोकमुद्रा के संपादक राजा कालंदकर कहते हैं, "साई बाबा की आत्मकथाएं ज्यादातर भक्त लोगों ने ही लिखी है. इतिहासकार जब इतिहास की किसी घटना के बारे में लिखते हैं तो इसका सबूत देते हैं. आत्मकथा लिखने वाले लोग केवल उस वक्त की कहानी लिखते हैं. उनका उद्देश्य गलत नहीं होता, लेकिन इसमें प्रमाण के होने की अहमियत को इतना अहम नही माना जाता है."
"उन दिनों अहमदनगर ज़िले में दिन बंधु नाम की एक पत्रिका निकला करती थी. सत्यशोधक समाज के एक कार्यकर्ता मुकुंदराव पाटिल उस पत्रिका के संपादक हुआ करते थे. लेकिन उन्होंने भी केवल एक बार साई बाबा का जिक्र किया था. महाराष्ट्र का बहुचर्चित केसरी भी उसी दौरान छपता था. लेकिन इसमें भी साई बाबा के बारे में शायद ही कुछ छपा. गांव वालों के मुताबिक़ तिलक और कई सारे बड़े नेता साईबाबा के दर्शन के लिए उस वक्त भी आते थे, हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नही मिला है.
साईबाबा की एक बार मजिस्ट्रेट के सामने गवाही हुई थी, लेकिन तब भी उन्होंने अपने जन्मस्थल के बारे में ज़िक्र नहीं किया था. सिर्फ खुद का नाम साईबाबा बताया था."
साल 2016 में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे, उस वक्त उन्होंने पाथरी का दौरा किया था.
साई स्मृति शताब्दी वर्ष के अवसर पर अपने भाषण में उन्होंने पाथरी को साई बाबा का जन्मस्थल बताया और इसका विकास किए जाने की जरूरत जताई.
उस वक्त उनका ऐसा करना कई लोगों को पसंद नही था.
भाजपा नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने इस बाबत रामनाथ कोविंद का पक्ष लेते हुए कहा था कि उन्हें शायद किसी ने गलत जानकारी दी होगी, इसलिए कोविंद ने वह बात कही होगी.
इस बहस पर दोनों पक्ष चर्चा की तैयारी में है.
पाथरी के अतुल चौधरी के अनुसार, उनके पास साईबाबा के जन्मस्थल को लेकर 29 प्रमाण हैं.
वे कहते हैं, "हम सरकार को ये सबूत सौंपने के लिए तैयार हैं. हमें इस बात पर कोई एतराज नहीं होगा, अगर सरकार इन सबूतों पर गौर करने का फ़ैसला करे."
दूसरी तरफ़ शिरडी के सुरेश हवारे का कहना है कि सरकार की गलती से पाथरी को जन्मस्थल कहा गया है. ये श्रद्धा का विषय है और सरकार को इसे सावधानी से सुलझाना चाहिए. ये फ़ैसला शोध और सबूत की बुनियाद पर ही लिया जाना चाहिए."
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